गुरुवार, 30 जून 2016

Collection of Vidyapati's Compositions


हम सौ रुसल महेशे । गौरी विकल मन करथि उदेशे

हम सौ रुसल महेशे । गौरी विकल मन करथि उदेशे ॥
पूछिए पथिकजन तोहि । ए पथे देखल कहु बुढ बटोही ॥
अंगमे विभूति अनुपे । कतेक कहब हुनि जोगिक सरूपे ॥
विद्यापति भण ताहि । गौरी हर लेल भेल बताहि ॥  

उगना रे मोर कतय गेला |

उगना  रे मोर कतय गेला  । कतय गेला शिव कि दहु भेला ॥
भांग नहि बटुआ रुसि बैसलाह ।  जोहि हेरि आनि देल हसि उठलाह ॥
जो मोर कहत उगना उदेश । ताहि देवँओ कर कंगना वेश ॥
नन्दन वन मे भेटल महेश । गौरी मन हरषित मेटल कलेश ॥
विद्यापति भन उगना सँऔ काज । नहि हितकर मोर त्रिभुवनराज ॥ 

रविवार, 19 जून 2016

कखन हरब दुख मोर हे भोलेनाथ

कखन हरब दुख मोर  हे भोलेनाथ ॥
दुखहि जनम भेल दुखहि गमाएब । सुख सपनहु नहि भेल , हे भोलेनाथ ॥
अछत चानन अबर गंगाजल । बेल पात तोहि देव , हे भोलेनाथ ॥
जहि भवसागर थाह कतहु नहि । भैरव धरु कर आए , हे भोलेनाथ ॥
भन विद्यापति मोर भोलेनाथ गति । देहु अभय वर मोहि, हे भोलेनाथ ॥ 

शुक्रवार, 17 जून 2016

चंद्रमुखी सन गौरी हमर छथि

चंद्रमुखी सन  गौरी हमर छथि ,सुरुज सन करब जमाई ।
हमर मनोरथ दैवो  न बूझल , बुढे वर अनि  तुलाइ ॥
एही वर के हम हड़ी ठोकायब ,बान्हि देवैन्ह वनसार ।
कानि कानि गौरी चिठिया लिखाओल, हर के कोन  अपराध ॥
हमरो करम मे  इएह वर लिखल ,लिखल मेटल नहि  जाय ।
भनहि विद्यापति सुनिय मनइन, लिखल मेटल नहि  जाय ॥  

जोगिया मोर जगत सुख दायक

आगे माई , जोगिया मोर जगत सुख  दायक , दुख ककरो  नहि देल ॥
दुख ककरो  नहीं देल महादेव, दुख ककरो  नहि देल॥
एहि  जोगिया के भांग भुलेलक, धतुर खोआए धन  लेल ॥
आगे  माई, कातिक गणपति दुइजन बालक , जग भर क नहि जान ॥
तिनका अभरन किछुओ न थिकईन, रतिएक सोन नहि कान ॥
आगे माई , सोना रूपा अनका  सुत  अभरन , आपन रुद्रक माल ॥
अपना सुत लए  किछुओ ने जुरइनि, अनका लए जंजाल ॥
आगे  माई, छन मे हेरथि कोटि धन -बकसथि , ताहि देबा  नहि थोर ॥
भन विद्यापसुनह मनईन,थिका दिगम्बर  भोर ॥   

गुरुवार, 16 जून 2016

जय जय भैरवी असुर भयावनी



जय  जय भैरवि  असुर  भयाउनि , पशुपति -भामिनि  माया ।
सहज  सुमति  बर  दिय गोसाउनि , अनुगति  गति  तुअ पाया ॥

बासर -रैनि  सबासन  शोभित,चरण चंद्रमणि चूड़ा ।
कतओक दैत्य  मारी  मुह  मेलल , कतओ  उगिल  कैल  कूड़ा ॥

सामर बरण नयन अनुरंजित , जलद   जोग फुल कोका ।
कट कट विकट ओठ -पुट  पाँड़रि लिधुर -फेन उठ  फोका ॥

घन घन घनए घुघुर  कत  बजय , हन हन  कर तुअ  काता ।
विद्यापति कवि  तुअ  पद-सेवक , पुत्र बीसरू  जनि  माता ॥