आगे माई , जोगिया मोर जगत सुख दायक , दुख ककरो नहि देल ॥
दुख ककरो नहीं देल महादेव, दुख ककरो नहि देल॥
एहि जोगिया के भांग भुलेलक, धतुर खोआए धन लेल ॥
आगे माई, कातिक गणपति दुइजन बालक , जग भर क नहि जान ॥
तिनका अभरन किछुओ न थिकईन, रतिएक सोन नहि कान ॥
आगे माई , सोना रूपा अनका सुत अभरन , आपन रुद्रक माल ॥
अपना सुत लए किछुओ ने जुरइनि, अनका लए जंजाल ॥
आगे माई, छन मे हेरथि कोटि धन -बकसथि , ताहि देबा नहि थोर ॥
भन विद्यापसुनह मनईन,थिका दिगम्बर भोर ॥
दुख ककरो नहीं देल महादेव, दुख ककरो नहि देल॥
एहि जोगिया के भांग भुलेलक, धतुर खोआए धन लेल ॥
आगे माई, कातिक गणपति दुइजन बालक , जग भर क नहि जान ॥
तिनका अभरन किछुओ न थिकईन, रतिएक सोन नहि कान ॥
आगे माई , सोना रूपा अनका सुत अभरन , आपन रुद्रक माल ॥
अपना सुत लए किछुओ ने जुरइनि, अनका लए जंजाल ॥
आगे माई, छन मे हेरथि कोटि धन -बकसथि , ताहि देबा नहि थोर ॥
भन विद्यापसुनह मनईन,थिका दिगम्बर भोर ॥
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