शुक्रवार, 17 जून 2016

जोगिया मोर जगत सुख दायक

आगे माई , जोगिया मोर जगत सुख  दायक , दुख ककरो  नहि देल ॥
दुख ककरो  नहीं देल महादेव, दुख ककरो  नहि देल॥
एहि  जोगिया के भांग भुलेलक, धतुर खोआए धन  लेल ॥
आगे  माई, कातिक गणपति दुइजन बालक , जग भर क नहि जान ॥
तिनका अभरन किछुओ न थिकईन, रतिएक सोन नहि कान ॥
आगे माई , सोना रूपा अनका  सुत  अभरन , आपन रुद्रक माल ॥
अपना सुत लए  किछुओ ने जुरइनि, अनका लए जंजाल ॥
आगे  माई, छन मे हेरथि कोटि धन -बकसथि , ताहि देबा  नहि थोर ॥
भन विद्यापसुनह मनईन,थिका दिगम्बर  भोर ॥   

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