चंद्रमुखी सन गौरी हमर छथि ,सुरुज सन करब जमाई ।
हमर मनोरथ दैवो न बूझल , बुढे वर अनि तुलाइ ॥
एही वर के हम हड़ी ठोकायब ,बान्हि देवैन्ह वनसार ।
कानि कानि गौरी चिठिया लिखाओल, हर के कोन अपराध ॥
हमरो करम मे इएह वर लिखल ,लिखल मेटल नहि जाय ।
भनहि विद्यापति सुनिय मनइन, लिखल मेटल नहि जाय ॥
हमर मनोरथ दैवो न बूझल , बुढे वर अनि तुलाइ ॥
एही वर के हम हड़ी ठोकायब ,बान्हि देवैन्ह वनसार ।
कानि कानि गौरी चिठिया लिखाओल, हर के कोन अपराध ॥
हमरो करम मे इएह वर लिखल ,लिखल मेटल नहि जाय ।
भनहि विद्यापति सुनिय मनइन, लिखल मेटल नहि जाय ॥
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