गुरुवार, 16 जून 2016

जय जय भैरवी असुर भयावनी



जय  जय भैरवि  असुर  भयाउनि , पशुपति -भामिनि  माया ।
सहज  सुमति  बर  दिय गोसाउनि , अनुगति  गति  तुअ पाया ॥

बासर -रैनि  सबासन  शोभित,चरण चंद्रमणि चूड़ा ।
कतओक दैत्य  मारी  मुह  मेलल , कतओ  उगिल  कैल  कूड़ा ॥

सामर बरण नयन अनुरंजित , जलद   जोग फुल कोका ।
कट कट विकट ओठ -पुट  पाँड़रि लिधुर -फेन उठ  फोका ॥

घन घन घनए घुघुर  कत  बजय , हन हन  कर तुअ  काता ।
विद्यापति कवि  तुअ  पद-सेवक , पुत्र बीसरू  जनि  माता ॥

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