जय जय भैरवि असुर भयाउनि , पशुपति -भामिनि माया ।
सहज सुमति बर दिय गोसाउनि , अनुगति गति तुअ पाया ॥
बासर -रैनि सबासन शोभित,चरण चंद्रमणि चूड़ा ।
कतओक दैत्य मारी मुह मेलल , कतओ उगिल कैल कूड़ा ॥
सामर बरण नयन अनुरंजित , जलद जोग फुल कोका ।
कट कट विकट ओठ -पुट पाँड़रि लिधुर -फेन उठ फोका ॥
घन घन घनए घुघुर कत बजय , हन हन कर तुअ काता ।
विद्यापति कवि तुअ पद-सेवक , पुत्र बीसरू जनि माता ॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें