रविवार, 19 जून 2016

कखन हरब दुख मोर हे भोलेनाथ

कखन हरब दुख मोर  हे भोलेनाथ ॥
दुखहि जनम भेल दुखहि गमाएब । सुख सपनहु नहि भेल , हे भोलेनाथ ॥
अछत चानन अबर गंगाजल । बेल पात तोहि देव , हे भोलेनाथ ॥
जहि भवसागर थाह कतहु नहि । भैरव धरु कर आए , हे भोलेनाथ ॥
भन विद्यापति मोर भोलेनाथ गति । देहु अभय वर मोहि, हे भोलेनाथ ॥ 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें