कखन हरब दुख मोर हे भोलेनाथ ॥
दुखहि जनम भेल दुखहि गमाएब । सुख सपनहु नहि भेल , हे भोलेनाथ ॥
अछत चानन अबर गंगाजल । बेल पात तोहि देव , हे भोलेनाथ ॥
जहि भवसागर थाह कतहु नहि । भैरव धरु कर आए , हे भोलेनाथ ॥
भन विद्यापति मोर भोलेनाथ गति । देहु अभय वर मोहि, हे भोलेनाथ ॥
दुखहि जनम भेल दुखहि गमाएब । सुख सपनहु नहि भेल , हे भोलेनाथ ॥
अछत चानन अबर गंगाजल । बेल पात तोहि देव , हे भोलेनाथ ॥
जहि भवसागर थाह कतहु नहि । भैरव धरु कर आए , हे भोलेनाथ ॥
भन विद्यापति मोर भोलेनाथ गति । देहु अभय वर मोहि, हे भोलेनाथ ॥
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